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औचक निरीक्षण में छिपा ली गईं हकीकतें! स्वास्थ्य केंद्र सरगांव की गंभीर समस्याओं पर फिर पड़ा पर्दा.. स्थानीय पत्रकारों ने पहले ही उठाए थे सवाल, पर बीएमओ बना रहा मौन दर्शक – निरीक्षण बनकर रह गया औपचारिकता

मुंगेली, 13 अप्रैल 2025// भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री सौरभ जैन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन छत्तीसगढ़ के मिशन संचालक श्री विजय दयाराम और एनएचएम के एम.एण्ड ई. ऑफिसर श्री आनंद साहू द्वारा शनिवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सरगांव का औचक निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान वरिष्ठ अधिकारियों ने अस्पताल के विभिन्न विभागों जैसे ओपीडी, लेबर रूम, वार्ड, आपातकालीन सेवा, एनबीएसयू, एक्स-रे, दंत चिकित्सा, टेलीमेडिसिन, आयुष्मान भारत योजना आदि का अवलोकन कर संतोष जताया और कर्मचारियों को स्वास्थ्य सुविधाओं को और बेहतर बनाने के निर्देश दिए।

लेकिन इस पूरे निरीक्षण के दौरान जो सबसे बड़ा सवाल उठता है, वह यह कि क्या यह निरीक्षण जमीनी सच्चाई से रूबरू हुआ? क्या आमजनों की वर्षों से चली आ रही समस्याओं की ओर किसी अधिकारी ने ध्यान दिया?

स्थानीय पत्रकारों ने पहले ही खोली थी पोल

पिछले कई महीनों से स्थानीय पत्रकारों ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सरगांव में व्याप्त अव्यवस्थाओं को लेकर लगातार खबरें प्रकाशित कीं। अस्पताल में डॉक्टरों की समय पर अनुपस्थिति, गर्भवती महिलाओं को समय पर इलाज न मिलना, गंभीर मरीजों को बिना इलाज के बिलासपुर रेफर कर देना, आयुष्मान कार्ड के नाम पर पैसे की मांग करना, एक्स-रे मशीन का महीनों से बंद होना जैसी समस्याओं को बार-बार उजागर किया गया। बावजूद इसके न तो बीएमओ ने कोई कार्रवाई की, न ही जिला स्वास्थ्य प्रशासन ने कोई ठोस पहल की।

औचक निरीक्षण, लेकिन जनता और पत्रकार गायब..

औचक निरीक्षण का असली मकसद तब पूरा होता है जब स्थानीय जनता और मीडिया को इसमें शामिल कर समस्याओं की जमीनी सच्चाई को जाना जाए, लेकिन इस निरीक्षण में न तो आम नागरिकों से संवाद किया गया, न ही स्थानीय पत्रकारों को सूचना दी गई। यह दर्शाता है कि निरीक्षण केवल दस्तावेजों और सतही व्यवस्था का जायजा लेकर ‘खानापूर्ति’ तक सीमित था।

बीएमओ की भूमिका सवालों के घेरे में..

स्वास्थ्य केंद्र के बीएमओ को लेकर पहले भी आरोप लगते रहे हैं कि वे समस्याओं की अनदेखी करते हैं और शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेते। वर्षों से पद पर बने रहने के कारण उनके कार्यशैली को लेकर आम जनता में असंतोष है, लेकिन अब तक प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

जनहित की उम्मीदें अब भी अधूरी

जहां एक ओर राज्य व केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर निचले स्तर पर बैठे जिम्मेदार अधिकारी ही इन प्रयासों को पलीता लगाने में जुटे हैं। अगर प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग वास्तव में व्यवस्था सुधारना चाहते हैं तो उन्हें जमीनी हकीकत से रूबरू होना होगा और जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों तथा आम जनता की बातों को गंभीरता से लेना होगा।

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