बिल्हा विधानसभा के ग्रामीण मार्ग बदहाली के शिकार, बरसात में ग्रामीणों की जान सांसत में — आंदोलन की चेतावनी, सुशासन तिहार में शिकायत कोई सुनवाई नहीं..

सरगांव/बिल्हा विधानसभा। बिल्हा विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत कई ग्राम पंचायतों के संपर्क मार्ग इन दिनों बदहाली की पराकाष्ठा को छू रहे हैं। करही, धमनी, रामबोड़, हिंछापुरी, कचरबोड़ और हथकेरा जैसे गांवों की मुख्य सड़कें बरसात के मौसम में दलदल और जानलेवा गड्ढों में तब्दील हो चुकी हैं। यह हालात शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही और जनप्रतिनिधियों के खोखले वादों की पोल खोलते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों से वे सड़क की मरम्मत और पक्कीकरण की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन चुनावों के बाद सरकार और विभाग के अफसर सबकुछ भूल जाते हैं। अब हालात इतने खराब हो चुके हैं कि लोगों को जान जोखिम में डालकर सफर करना पड़ रहा है।

करही पहुंच मार्ग बना जानलेवा, बारिश में गड्ढों में समा रही सड़क

सरगांव से महज 3 किलोमीटर दूर ग्राम करही को जोड़ने वाला मार्ग पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। शुरुआती बरसात में ही इस मार्ग पर बड़े-बड़े गड्ढे उभर आए हैं, जिनमें पानी भर जाने से राहगीरों को दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय ग्रामीण हरिलाल निषाद (65) और नारायण बंजारे जैसे नागरिक बताते हैं कि दोपहिया वाहन सवार आए दिन गिरकर घायल हो रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि 25 मई को लोक निर्माण विभाग द्वारा मरम्मत कार्य की औपचारिकता निभाई गई थी, लेकिन बजरी की जगह केवल मिट्टी डालकर खानापूर्ति कर दी गई, जिससे सड़क फिर से पहले जैसी ही बदहाल हो गई।

मनियारी-धमनी-रामबोड़ मार्ग: उद्योगों की ओवरलोड गाड़ियों से तबाह सड़क

ग्राम पंचायत सल्फा से होकर मनियारी नदी, धमनी और रामबोड़ को जोड़ने वाला यह 9 किलोमीटर लंबा मार्ग क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों की ओवरलोड गाड़ियों की वजह से बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। फैक्ट्रियों के ट्रकों की भारी आवाजाही ने सड़क को उखाड़कर रख दिया है। उपसरपंच एजाज अली और सरपंच प्रतिनिधि राज कौशिक ने बताया कि उन्होंने सुशासन तिहार के दौरान विभाग को लिखित आवेदन सौंपा, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। सड़क की हालत ऐसी है कि समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के कारण एक मरीज की जान भी जा चुकी है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द कार्य नहीं हुआ तो वे उग्र आंदोलन करेंगे।

हिंछापुरी-कचरबोड़-हथकेरा मार्ग कीचड़ में तब्दील, स्कूल और अस्पताल पहुंचना हुआ मुश्किल

पथरिया जनपद अंतर्गत 4 किलोमीटर लंबा यह संपर्क मार्ग भी बारिश में दलदल में बदल गया है। स्कूली छात्राएं आए दिन कीचड़ में गिरकर चोटिल हो रही हैं और मरीजों को चारपाई में उठाकर मुख्य सड़क तक लाना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि पीडब्ल्यूडी विभाग ने सिर्फ मुरुम डालकर काम चलाया, जिससे हालात और खराब हो गए। व्यास नारायण गेंदले बताते हैं कि 19 महीने पहले चुनाव के समय पक्की सड़क का वादा किया गया था, लेकिन अब तक कोई काम नहीं हुआ। हर साल ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित किया जाता है, परन्तु कार्यवाही शून्य है।

राजनीतिक उपेक्षा और प्रशासनिक निष्क्रियता के शिकार ग्रामीण

छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस पिछड़ा वर्ग विभाग के उपाध्यक्ष दिलीप कौशिक ने कहा कि बिल्हा विधानसभा के अधिकतर ग्रामीण मार्गों की हालत दयनीय है। उन्होंने भाजपा सरकार और विभाग पर निशाना साधते हुए कहा कि चुनावी वादे सिर्फ वोट लेने का जरिया थे, जिन पर 19 महीने बाद भी अमल नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि ये सड़कें ग्रामीणों के लिए जीवनरेखा हैं, लेकिन शासन की लापरवाही के कारण आज ये मौत के कुंए बन चुकी हैं।


ग्रामीणों की स्पष्ट चेतावनी: अब आंदोलन ही विकल्प

करही, धमनी, रामबोड़, हिंछापुरी, कचरबोड़ और हथकेरा जैसे गांवों के ग्रामीण अब एकजुट होकर आवाज उठा रहे हैं। वे अब सिर्फ आश्वासन नहीं, ठोस काम चाहते हैं। यदि जल्द ही सड़क की मरम्मत और पक्कीकरण की दिशा में कार्य प्रारंभ नहीं हुआ, तो वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।


बिल्हा क्षेत्र की बदहाल सड़कों पर फूटा ग्रामीणों का गुस्सा, जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने कही ये बातें


🗣 हरिलाल निषाद (65 वर्षीय, ग्रामीण, करही)

“यह मार्ग करही को सरगांव और अन्य बाजारों से जोड़ता है। हम रोज इसी रास्ते से आते-जाते हैं, लेकिन अब यह सड़क जानलेवा बन गई है। बारिश में गड्ढों का अंदाजा तक नहीं होता, कई लोग गिरकर घायल हो चुके हैं।”


🗣 नारायण बंजारे (ग्रामीण, करही)

“हर साल यही हाल होता है। कई बार बाइक से गिर चुका हूं, अब डर लगता है इस रास्ते से जाने में। जब बारिश तेज होती है तो यह पूरा मार्ग पानी में डूब जाता है, हमें मजबूरी में लंबा चक्कर काटकर जाना पड़ता है।”


🗣 एजाज अली (उपसरपंच, ग्राम पंचायत धमनी)

“मैंने सुशासन तिहार के अवसर पर लोक निर्माण विभाग को लिखित आवेदन सौंपा था, जिसमें धमनी से मनियारी तक की सड़क की मरम्मत की मांग की गई थी। आज तक कोई कार्य नहीं हुआ। बरसात में यह सड़क पूरी तरह दलदल बन जाती है। एक मरीज ने अस्पताल नहीं पहुंच पाने के कारण रास्ते में दम तोड़ दिया था। अब अगर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो हम ग्रामीण आंदोलन करेंगे।”


🗣 राज कौशिक (सरपंच प्रतिनिधि, ग्राम पंचायत धमनी)

“धमनी से मनियारी तक की सड़क हमारे गांवों के लिए जीवनरेखा है। यह मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग और फैक्ट्रियों से भी जुड़ा है। लेकिन हालत यह है कि रोज़ाना ग्रामीण जान जोखिम में डालते हैं। हमने कई बार आवेदन दिए, लेकिन केवल आश्वासन ही मिला है। अब मरम्मत नहीं, पूर्ण निर्माण कार्य चाहिए।”


🗣 सुरेश ध्रुव (सरपंच, ग्राम पंचायत रामबोड़)

“यह मार्ग तहसील, बाजार और अस्पताल से जोड़ता है। इसकी हालत इतनी खराब है कि मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाना भी चुनौती बन चुका है। शासन और विभाग की लापरवाही के खिलाफ अब हम ग्रामीण उग्र आंदोलन करेंगे।”


🗣 व्यास नारायण गेंदले (ग्रामीण, कचरबोड़)

“यह मार्ग हमारी जीवनरेखा है, लेकिन बारिश में कीचड़ और दलदल में तब्दील हो जाता है। बच्चों का स्कूल जाना और मरीजों को अस्पताल ले जाना बहुत मुश्किल हो गया है। चुनाव के समय वादा किया गया था कि पक्की सड़क बनेगी, लेकिन 19 महीने बीत चुके हैं और कुछ भी नहीं हुआ। मुरुम डालने से हालात और बिगड़ गए। अब सिर्फ वादे नहीं, हमें ठोस काम चाहिए।”


🗣 हरिदास कुर्रे (सचिव, ग्राम पंचायत हिंछापुरी)

“हमने पिछले पाँच वर्षों से प्रत्येक ग्रामसभा में सड़क मरम्मत को प्राथमिकता दी है। हर साल प्रस्ताव जनपद पंचायत को भेजा गया है, लेकिन आज तक कोई मरम्मत कार्य शुरू नहीं हुआ।”


🗣 छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस पिछड़ा वर्ग विभाग के उपाध्यक्ष दिलीप कौशिक

“बिल्हा विधानसभा क्षेत्र की अधिकतर ग्रामीण सड़कों की स्थिति बेहद खराब है। भाजपा सरकार ने चुनाव के समय वादे तो किए, लेकिन 19 माह बाद भी सड़कों की सुध नहीं ली गई। यह मार्ग ग्रामीणों के जीवन, स्वास्थ्य, शिक्षा और जरूरतों से जुड़ी जीवनरेखा हैं, लेकिन भाजपा सरकार ने इन्हें उपेक्षा और पीड़ा का प्रतीक बना दिया है।”

अब सवाल यह है कि क्या शासन-प्रशासन इन आवाजों को सुनेगा, या फिर ग्रामीणों को हर साल बारिश में कीचड़, दुर्घटनाओं और अपमान से दो-चार होना पड़ेगा?


निष्कर्ष

इन तमाम बयानों से स्पष्ट है कि ग्रामीण अब आश्वासनों से नहीं, कार्रवाई से बदलाव चाहते हैं। सड़कें केवल विकास का प्रतीक नहीं, बल्कि आमजन की जिंदगी, स्वास्थ्य और सम्मान से जुड़ी बुनियादी ज़रूरत हैं। यदि शासन-प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो यह आक्रोश बड़ा आंदोलन बन सकता है।


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