“पचास वर्षों की सेवा, अब सम्मान की बारी – आंगनबाड़ी बहनों ने पीएम और सीएम से लगाई न्याय की गुहार”

सरगांव – 50 वर्षों की उपेक्षा पर जताई चिंता छत्तीसगढ़ की एक लाख से अधिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं ने देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय को एक संयुक्त पत्र प्रेषित कर अपने सेवा काल के 50 वर्षों के अनुभव और पीड़ा को साझा करते हुए मूलभूत सुविधाओं की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का आग्रह किया है। यह पत्र एक अभियान का रूप ले चुका है, जिसमें पूरे प्रदेश की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं अपनी एकजुटता प्रदर्शित कर रही हैं।

   पत्र में उल्लेख किया गया है कि देश में एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना की शुरुआत 2 अक्टूबर 1975 को हुई थी और तब से लेकर आज तक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिकाएं देश के दूरस्थ ग्रामीण अंचलों से लेकर शहरी क्षेत्रों तक सरकार की योजनाओं को घर-घर पहुंचाने का कार्य निष्ठा से कर रही हैं। महिला एवं बाल विकास, पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य, टीकाकरण जैसी अनेक सेवाओं को सफलतापूर्वक समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने में इनकी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। इसके बावजूद आज 50 वर्षों बाद भी इन्हें न तो शासकीय कर्मचारी का दर्जा प्राप्त हो पाया है और न ही किसी भी प्रकार की श्रमिक या मजदूर की मान्यता मिली है। कार्य का स्वरूप पूर्णकालिक, नियमित और जिम्मेदारियों से भरा हुआ होने के बावजूद इन्हें मानदेय के रूप में बहुत ही कम राशि दी जाती है, जो वर्तमान महंगाई के दौर में न्यूनतम जीवन स्तर के लिए भी अपर्याप्त है।

  वर्तमान में केन्द्र सरकार द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को मात्र ₹4500 और सहायिका को ₹2500 प्रतिमाह दिए जा रहे हैं, जो किसी भी दृष्टि से सम्मानजनक नहीं कहा जा सकता।अतः आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 26000 और सहायिका को 22100 प्रतिमाह का मानदेय दिया जाना चाहिए। पत्र में यह भी कहा गया है कि जब-जब उन्होंने अपनी मांगें उठाई हैं, तब-तब केंद्र और राज्य सरकारें एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालती रही हैं। परन्तु अब जबकि देश और छत्तीसगढ़ दोनों स्थानों पर एक ही दल की सरकार है, तब इस संवेदनशील मुद्दे पर ठोस निर्णय की अपेक्षा की जा रही है।

  कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि अब समय आ गया है कि सरकार उन्हें शासकीय कर्मचारी के रूप में मान्यता प्रदान करे, जिससे वे सामाजिक सुरक्षा, वेतन, पेंशन, बीमा और चिकित्सा सुविधा जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित न रहें।आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने यह भी शिकायत की है कि वर्तमान में डिजिटल प्रणाली जैसे फेस कैप्चर, FRS और e-KYC ने कार्यों को और अधिक जटिल बना दिया है, जिससे लाभार्थियों तक योजनाओं का सुचारू क्रियान्वयन बाधित हो रहा है। उन्होंने मांग की है कि इन तकनीकी प्रक्रियाओं को समाप्त कर कार्य प्रणाली को पुनः ऑफलाइन किया जाए ताकि वे पहले की तरह आसानी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें।

   आंगनबाड़ी बहनों ने अपने पत्र के माध्यम से यह विश्वास जताया है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री, दोनों ही “नारी शक्ति” को सशक्त बनाने की दिशा में गंभीर हैं और निश्चित ही वे आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की पीड़ा को समझते हुए न्यायपूर्ण निर्णय लेंगे। उनका यह पत्र एक निवेदन मात्र नहीं बल्कि एक लंबी सेवा यात्रा की पीड़ा, समर्पण और अब सम्मान पाने की आकांक्षा का प्रतीक है।

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