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विशेष वर्ग को संरक्षण, अन्य पर सख्ती – जिला शिक्षा अधिकारी की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल


बिलासपुर जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) अनिल तिवारी की कार्यप्रणाली को लेकर शिक्षा विभाग में गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। आरोप है कि वे एक विशेष वर्ग के प्रति नरम रुख अपनाते हैं, जबकि अन्य वर्गों के कर्मचारियों पर कठोर कार्रवाई करने में देर नहीं करते।

सूत्रों के अनुसार, कई बड़े मामलों में जहां स्पष्ट शिकायतें और पुख्ता प्रमाण मौजूद हैं, वहां भी “बड़ी मछलियों” को कार्रवाई से बचा लिया जाता है। वहीं छोटे-छोटे मामलों में अन्य कर्मचारियों पर सिविल सेवा आचरण नियमों का हवाला देते हुए त्वरित कार्रवाई की जाती है।

न्याय का पैमाना बदलता है नाम देखकर?
शिक्षा विभाग के कुछ मामलों की बात करें तो एकादशी पोरते, विजय टंडन, गीता राही, रश्मि विश्वकर्मा जैसे नाम सामने आते ही तेज़ी से कार्रवाई की जाती है। वहीं साधेलाल पटेल की शिकायत आने के 24 घंटे के भीतर ही जांच दल गठित कर दिया गया। आरोप यह भी है कि मानो शिकायत पत्र आने का ही इंतजार किया जा रहा था।

निशा तिवारी और चंद्ररेखा शर्मा के मामले में चुप्पी
दूसरी ओर, सिविल सेवा नियमों की अवहेलना कर विदेश यात्रा करने वाली प्राचार्य निशा तिवारी के मामले में अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। इसी तरह, फर्जी नियुक्ति प्रकरण में जेडी कार्यालय द्वारा दोषी पाई गईं चंद्ररेखा शर्मा को भी कार्रवाई से राहत मिलती दिख रही है।

जांच टीम में विशेष वर्ग की अनिवार्यता?
प्राप्त जानकारी के अनुसार, डीईओ कार्यालय द्वारा गठित जांच समितियों में भी एक विशेष वर्ग के सदस्य की मौजूदगी को अनिवार्य माना जाता है, जिससे पक्षपात की आशंका और गहरा जाती है।

इस पूरे मामले पर अब शिक्षक संघों और कर्मचारियों में असंतोष पनप रहा है। सभी की मांग है कि जिला शिक्षा अधिकारी की कार्यशैली की निष्पक्ष जांच हो और कार्रवाई में समानता बरती जाए।


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