सेतगंगा, [मुंगेली]।
ग्राम पंचायत सेतगंगा में गर्मी की दस्तक के साथ ही पेयजल संकट गहराने लगा है। गांव के तालाब, कुआं, डबरी और कुंड जैसे परंपरागत जल स्रोत सूखने की कगार पर हैं, वहीं हैंडपंप और बोरवेल का जलस्तर भी तेजी से नीचे गिर रहा है। इससे ग्रामीणों को निस्तार और पेयजल दोनों के लिए भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, पानी की किल्लत और गंभीर होती जा रही है। ग्राम के प्रमुख जल स्रोत जैसे सोना रिन तालाब में गंदगी, जलकुंभी और कचरे के कारण पानी अनुपयोगी हो चुका है। यह तालाब कभी धार्मिक आयोजनों और सामाजिक कार्यक्रमों का केंद्र हुआ करता था, मगर आज खुद ही जीवनदान की आस लगाए बैठा है।

नल-जल योजना बनी शोपीस
ग्रामीणों के अनुसार गांव के लगभग 400 घरों में नल-जल योजना के तहत कनेक्शन तो दिए गए हैं, लेकिन पानी की आपूर्ति नाममात्र की है। वार्ड क्रमांक 1, 2, 5, 6, 7, 11, 13 और 15 में पेयजल संकट सबसे ज्यादा गंभीर है। स्थानीय निवासी कन्हैया गुप्ता, धन प्रसाद टोंडर और खेदू राम टोडर बताते हैं कि ठेकेदार की लापरवाही और विभागीय उदासीनता के चलते नल योजना पूरी तरह फेल हो चुकी है।
बाबा गुरु घासीदास मंदिर के पास का बोर बना मुख्य स्रोत
अभिषेक जायसवाल ने बताया कि सन 2005 में तत्कालीन सरपंच द्वारा बाबा गुरु घासीदास मंदिर के पास एक बोर खनन किया गया था, जो आज भी मुख्य जल स्रोत है। लेकिन वहां से सप्लाई होने वाला पानी इतनी धीमी गति से आता है कि एक परिवार को अपना दैनिक जल भरने में घंटों लग जाते हैं।
सरकारी लापरवाही से बिगड़ा हाल
गत वर्ष तालाब गहरीकरण और पचरी निर्माण कार्य पर शासन द्वारा 9.98 लाख रुपये खर्च किए गए थे, लेकिन आज भी तालाब निस्तार योग्य नहीं है। न तो वर्षा जल संरक्षण की कोई योजना बनती है और न ही नियमित सफाई का कोई इंतजाम।
ग्रामीणों ने प्रशासन से अपील की है कि पानी की गंभीर समस्या को देखते हुए तत्काल कदम उठाया जाए और नल-जल योजना को सुधारते हुए परंपरागत जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया जाए।